Shaheen has improved the lives of 50 acid attack survivors : “हौसले बुलंद कर तू पहल कर, देखकर तुझको.. काफिला खुद बन जाएगा।” इन पंक्तियों को दिल्ली की शाहीन मलिक ने बखूबी अपने जीवन में उतारा है। शाहीन एक एसिड अटैक सर्वाइवर हैं और आज अपने ही जैसे सैकड़ों लोगों के लिए एक सहारा बनी हैं। शाहीन की संस्था ‘Brave Souls Foundation’ आज देश के कोने-कोने से आईं एसिड अटैक सर्वाइवर्स का ‘अपना घर’ है। यह संस्था पीड़ित महिलाओं को न सिर्फ रहने का ठिकाना देती है बल्कि उनकी मनोवैज्ञानिक, कानूनी और सामाजिक लड़ाइयों में भी साझेदार बनती है। इस तरह वह पिछले दो सालों में अपनी संस्था के ज़रिए 50 से अधिक लोगों की मदद करके उन्हें आत्मनिर्भर बना चुकी हैं।
खुद के दर्द से मिला बुलंद हौसला
दिल्ली की रहने वाली शाहीन एक आत्मनिर्भर और बुलंद हौसले वाली लड़की थीं। लेकिन 19 नवंबर 2009 को उन्हें खुद एसिड अटैक का सामना किया था। बाद में उनकी 25 सर्जरी हुई और अभी भी एक दशक बाद उनका इलाज़ जारी है। इस हादसे के बाद वह करीबन तीन साल तक अपने घर की चार दीवारों में बंद हो गयी थीं लेकिन एक समय के बाद, उन्होंने अपने परिवार वालों के ऊपर बोझ बनने के बजाय खुद को फिर से लड़ने के लिए तैयार करने का मन बनाया।
अलग-अलग संस्था के पास गईं
वह देश की अलग-अलग संस्था के पास गईं और आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बनने के लिए लोगों से काम भी माँगा। इस दौरान उन्होंने महसूस किया कि एसिड अटैक पीड़ितों के लिए नौकरी या मदद मिलना इतना आसान भी नहीं है। अभी भी सर्वाइवर को कोई काम नहीं देना चाहता। क्योंकि उन्हें लगता है कि वे एक्स्ट्रा काम नहीं कर पाएंगी, वे शारीरिक रूप से कमजोर होंगी या उन्हें अपनाना दूसरे लोगों के लिए मुश्किल होगा।
अपने हक की लड़ाई लड़ रही हैं
इतना ही नहीं कई पीड़ित महिलाएं तो डर के कारण खुद के लिए क़ानूनी लड़ाई तक नहीं लड़ती। ऐसे में शाहीन ने बदलाव की मशाल जलाने का फैसला किया। वैसे तो वह अपने स्तर पर महिलाओं की मदद कर ही रही थीं। लेकिन साल 2021 में उन्होंने एक संस्था बनाकर जरूरतमंद महिलाओं को आसरा देना भी शुरू किया। आज ‘अपना घर’ में रहने वाली ये महिलाएं शाहीन की मदद से न सिर्फ अपने हक की लड़ाई लड़ रही हैं बल्कि आत्मनिर्भर भी बनी हैं।
चार अलग-अलग राज्यों में काम
यह शाहीन की हिम्मत और पीड़ितों के जीवन को बेहतर करने की सोच ही थी जिसके दम पर आज उनकी संस्था चार अलग-अलग राज्यों में काम कर रही है। यह संस्था पीड़ित महिलाओं को मानसिक, क़ानूनी और सामाजिक लड़ाई लड़ने में मदद भी कर रहा हैं। इतना ही नहीं उन्होंने दिल्ली के अलावा पश्चिम बंगाल में भी एक ‘ अपना घर ‘ शुरू किया ताकि ज़्यादा से ज़्यादा पीड़ितों तक मदद पहुंच सके।